17 साल में दूसरी बार मोदी को क्लीनचिट, सरकार पर सवाल उठाने वाले अफसरों के खिलाफ ही जांच की सिफारिश

नई दिल्ली भोपाल गुरूवार 12 दिसम्बर 2019. गुजरात में 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग की रिपोर्ट का दूसरा और आखिरी हिस्सा बुधवार को विधानसभा में पेश किया गया। रिपोर्ट में आयोग ने उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी और उनके तीन मंत्रियों को क्लीनचिट दे दी। वहीं, तीन पुलिस अधिकारियों संजीव भट्ट, आरबी श्रीकुमार और राहुल शर्मा के खिलाफ जांच की सिफारिश की गई है। नानावटी आयोग का गठन 6 मार्च 2002 को उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इस रिपोर्ट का पहला हिस्सा सितंबर 2008 में पेश किया जा चुका है, जिसमें भी मोदी को क्लीनचिट मिल गई थी।
गुजरात दंगों की जांच से जुड़े नानावटी आयोग की वो बातें, जिसे जानना जरूरी है
क्या है नानावटी आयोग और कब बना था?
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को जला दिया गया। इसमें अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गई। घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे, जिसमें 1,044 लोग मारे गए। इनमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे। गोधरा कांड की जांच के लिए 6 मार्च 2002 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नानावटी-शाह आयोग का गठन का किया। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जीटी नानावटी इसके सदस्य बने। 2009 में जस्टिस केजी शाह के निधन के बाद उनकी जगह गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता आए। जिसके बाद इसका नाम नानावटी-मेहता आयोग पड़ गया।


नानावटी आयोग की रिपोर्ट के पहले हिस्से में क्या था?
आयोग की रिपोर्ट का पहला हिस्सा सितंबर 2008 में पेश किया गया। रिपोर्ट में गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया। इसके साथ ही इसमें नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों को भी क्लीन चिट दी गई।


आयोग की रिपोर्ट के दूसरे हिस्से में क्या है?
नानावटी आयोग ने अपनी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा नवंबर 2014 को गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को दे दिया था। लेकिन इस रिपोर्ट को 5 साल बाद 11 दिसंबर 2019 को विधानसभा में पेश किया गया। इस रिपोर्ट में भी गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया। इसके साथ ही इन दंगों में नरेंद्र मोदी या उनके तत्कालीन मंत्रियों अशोक भट्ट, भरत बारोट और हरेन पंड्या की भूमिका को भी नकारा गया। 


कौन हैं वो अफसर, जिनकी जांच की सिफारिश की गई?
संजीव भट्ट, निलंबित डीआईजी: गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी और नानावटी आयोग से कहा था कि वे उस मीटिंग में मौजूद थे जिसमें गोधरा कांड के बाद नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से दंगाईयों से नरमी से निपटने को कहा था। इसके बाद संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया गया। जून 2019 में भट्ट को 1990 के एक मामले में निचली अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
आरबी श्रीकुमार, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक:  एसआईटी के सामने गुजरात सरकार के खिलाफ दस्तावेज सौंपे थे। पहले पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने नानावटी-शाह आयोग के सामने मोदी के खिलाफ गवाही दी। इसके बाद गुजरात सरकार ने उनका प्रमोशन रोक दिया। उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के सामने इसे चुनौती दी, जिसने सितंबर 2006 में श्रीकुमार के पक्ष में फैसला दिया।
राहुल शर्मा, पूर्व डीआईजी : जांच एजेंसियों को गुजरात दंगों के दौरान कुछ भाजपा नेताओं की फोन पर हुई बातचीत की सीडी दी थी। फरवरी 2015 में राहुल शर्मा ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी। फिलहाल वे गुजरात हाईकोर्ट में वकालत कर रहे हैं।


 


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