'अमित शाह ने नरेंद्र मोदी की छाया से अलग गढ़ ली है अपनी छवि'

 शुक्रवार 13 दिसम्बर, 2019. आज अमित शाह एक चमकते सितारे हैं लेकिन उन्होंने बुरा वक़्त भी देखा है, वे जेल में रहे और उनके गुजरात जाने पर भी अदालत ने रोक लगा दी थी लेकिन अब वे कांग्रेस के राज में लगे आरोपों से बरी हो चुके हैं.


कांग्रेस राज में भाजपा के अंदर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो शाह से दूर रहना चाहते थे. संसदीय बोर्ड की बैठक में सुषमा स्वराज ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की ओर देखते हुए पूछा, "आखिर हम कब तक अमित शाह को ढ़ोएंगे?"


बैठक में मौजूद नरेंद्र मोदी का धैर्य जवाब दे गया. उन्होंने कहा, "क्या बात करते हैं जी. पार्टी के लिए अमित के योगदान को कैसे भुला सकते हैं."


अरुण जेटली की ओर देखते उन्होंने कहा, "अरुण जी आप जेल जाइए और अमित शाह से मिलिए. उन्हें लगना चाहिए कि पार्टी उनके साथ है." उसके बाद इस मुद्दे पर बैठक में कोई कुछ नहीं बोला.


अरुण जेटली जेल गए और अमित शाह से मिले. जेल से छूटने के बाद जब अदालत ने उनके गुजरात जाने पर रोक लगा दी तो वे दिल्ली आ गए.
दिल्ली में अमित शाह ज्यादा लोगों को जानते नहीं थे. राजनीति के अलावा उनकी कोई और रुचि भी नहीं है. अरुण जेटली ने पार्टी के सात-आठ युवा नेताओं को ज़िम्मेदारी सौंपी कि रोज़ कम-से-कम दो लोग दिन भर अमित शाह के साथ रहेंगे.


शाह जितने दिन दिल्ली में रहे दोपहर का भोजन अरुण जेटली के यहां तय था. उस समय राजनाथ की जगह नितिन गडकरी पार्टी अध्यक्ष बन गए थे.


अमित शाह उनसे मिलने जाते थे तो दो-दो, तीन-तीन घंटे बाहर इंतज़ार करना पड़ता था, पर अमित शाह ने कभी किसी से शिकायत नहीं की. दिल्ली में रहने के बावजूद अमित शाह दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में अनजान ही थे.


साल 2013 आते-आते राजनाथ सिंह एक बार फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. मोदी के कहने पर राजनाथ सिंह ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया.


जब उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया तो पार्टी में सवाल उठे कि ये उत्तर प्रदेश के बारे में जानते क्या हैं? पर उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं को पहली ही बैठक में समझ में आ गया कि अमित शाह क्या चीज़ हैं.
बैठक शुरु हुई तो नेताओं ने बताना शुरू किया कि कौन-कौन सी लोकसभा सीट जीत सकते हैं. अमित शाह ने कहा कि "आप लोगों को कोई सीट जिताने की ज़रूरत नहीं है, ये बताइए कि कौन कितने बूथ जिता सकता है. मुझे बूथ जिताने वाले चाहिए, सीट जिताने वाले नहीं."


उसके बाद लोकसभा चुनाव के नतीजों ने अमित शाह को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया. इस कामयाबी ने उनके पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता भी साफ कर दिया.


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भाजपा की पूरी कार्य संस्कृति ही बदल दी. पार्टी में पदाधिकारियों से ज़्यादा अहमियत बूथ कार्यकर्ता की हो गई.


राज्यों के प्रभारी राष्ट्रीय महामंत्री अमूमन राज्य की राजधानी या कुछ प्रमुख शहरों तक जाते थे. अचानक सबने देखा कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बूथ स्तर के कार्यकर्ता से न केवल मिलने लगा बल्कि उसके घर भोजन पर जाने लगा.


हैदराबाद के एक ऐसे दौरे से लौटने के बाद राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव ने शिकायत की कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बूथ स्तर के कार्यकर्ता के यहां जाना क्या उचित है?


अमित शाह का टका-सा जवाब था, क्या पार्टी के संविधान में ऐसा लिखा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कार्यकर्ता के घर नहीं जा सकता? ये पदाधिकारियों के लिए संदेश था जो पहुंच गया.


 


 


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